आज तथाकथित कवि मानते हैं - कविता का ह्रास हो रहा रहा। जरा सोचिये कविता है क्या? सत्ता,
मानवता, पशुता, दानवता आदि ता प्रत्यय के अनगिनत शब्दों की श्रेणी में कविता भी है। बात करते है मानवता की- मानवता के प्रति सभी सजग हैं , करोड़ों दिमाग मानवता को गर्त से निकालने का उपक्रम कर रहे हैं, हर कोई मानने लगा है कि मानवता समाप्त हो चुकी है, वास्तव में ये सब कुछ ड्रामा है। जिस दिन मानवता को जान लेंगे मानवता आ जाएगी। जानहि तुमहि तुमहि हुई जाई।
ता प्रत्यय की व्यापकता समझने की जिज्ञासा ही समाधान है। '' गुण-दोष-वृत्ति-प्रवृत्ति, आचार,विचार, आहार आदि । " मानव अर्थात मनु की संतान यानि वर्णाश्रम व्यवस्था का पालन करने वाला आदि आदि , यदि हम मानव हैं तो मानवीय गुण-दोष-वृत्ति-प्रवृत्ति, आचार,विचार, आहार भी होंगे। यही तो मानवता है। पशु हैं तो पशुगत गुण-दोष-वृत्ति-प्रवृत्ति, आचार,विचार, आहार होंगे वही पशुता है । हम अपने पुरखा (मनु) की वर्णाश्रम व्यवस्था को कोसते है फिर मनु वंशज होंने का दंभ क्यों पाले हैं?
Wednesday, November 16, 2011
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