Tuesday, July 13, 2010

थिओसोफी क्या है?

थिओसोफी दो ग्रीक शब्द थिओस यानि ईश्वर तथा सोफि यानि दैवीय ज्ञान से मिल कर बना है। हिन्दू धर्म में ब्रह्मविद्या इस्लाम सूफीमत तथा ईसाई धर्म gnoisis इसके समतुल्य या पर्याय कहे गए हैं। इस प्रकार थिओसोफी का अर्थ है- ब्रह्मविद्या (ब्रह्मज्ञान)।
दिव्य मन किस प्रकार कार्य करता है इसका वर्णन ही थिओसोफी है। जब हम दैवीय विधान के विकास क्रम को समझ लेते हैं, तो हमारे सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं। थिओसोफी यानि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति प्राणिमात्र में बंधुत्व भाव का जीवन बरतने से ही हो सकती है। क्योंकि प्रेम प्रेरित कर्म ही सक्रिय ब्रह्मज्ञान है। जो प्रेम पूर्वक कर्म करता है वह अवश्य ही ब्रह्मज्ञान ही प्राप्त करता है। स्वयं थिओसोफी न केवल धर्म है और न ही कोई पंथ। यह तो पुरातन ज्ञान है जो सामान्य रूप से सभी धर्मों में समाहित है । धर्म न दूसर सत्य समाना, यानि सत्य से बढ़ कर कोई दूसरा धर्म नहीं है। इसी आधार शिला पर थिओसोफी मजबूती से खडी है। थिओसोफी में विचार प्राचीन - आधुनिक व वैज्ञानिक आविष्कारों तथा शोधों पर आधारित हैं। naveenatam विचारों, अवधारणाओं व आविष्कारों को आत्मसात करने की क्षमता है। थिओसोफीकल सोसायटी विश्व व्यापी संस्था है। किसी भी धर्म को मानाने वाले इसके सदस्य हैं।
थिओसोफी की मान्यता - सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। सत्य की खोज अध्ययन एवं पवत्र जीवन व उच्च विचारों से ही संभव है। सत्य का सत्व है-पदार्थ, जीवन, चेतना और चेतना से परे का तत्व। इसी श्रंखला में चेतन वह तत्व है , जिसके द्वारा हम शेष तत्वों का अनुभव करते हैं
हमें अपनी चेतना को समस्त पूर्व संग्रह से खाली करना होगा तभी वह तत्व प्रकाशित होगा । जिसका अस्तित्व है और जो सत्य है । सत्य या प्रज्ञान पूरी तरह से खुले मन के अतिरिक्त और किसी तरह नहीं पाया जा सकता है।

Thursday, July 8, 2010

हक़ हरण

विकल्प ने किया संकल्प का सत्यानाश

दर्शन-शास्त्र के अनुसार संकल्प ही प्रमुख हैं जब कि विकल्प किसी भी प्राणी को उसके गंतव्य तक नहीं पंहुचा सकते । संकल्प से दृढ इच्छा शक्ति का प्रादुर्भाव होता हैं ओर प्राणी अपने संकल्प को पूरा करने के लिए जी जान लगा देता हैं जबकि विकल्प इच्छा-शक्ति को कमजोर कर हारे पै हरि नाम का दृष्टिकोण बनाकर विकल्पों को सामने रख लेता हैं ओर कभी भी गंतव्य तक पंहुचने की इच्छा-शक्ति जागृत नहीं कर पाता

२१ वी शताब्दी के इस दौर में जब कि कंप्यूटर क्रान्ति का युग चल रहा हैं ऐसे में युवापीढ़ी को राष्ट्र उत्थान कि दिशा में संकल्प पूर्वक दृढ इच्छा-शक्ति के साथ आगे बदना चाहिए जबकि युवापीढ़ी अपने मनोबल को कमजोर करते हुए विकल्पों के आधार पर ऊपर बढ़ने की वजाय नीचे की ओर गिरती जा रही हैं ऐसे में भला राष्ट्रका उत्थान कैसे हो सकता हैं ? प्रत्येक अभिभावक अपनी संतान के उज्जवल भविष्य की कल्पना करते हुए उसकी अभिरुचि के अनुरूप शिक्षित करने का प्रयास करता हैं और उस दिशा में ऊँची से ऊँची डिग्री हासिल कराता हैं भले ही हाई मैरिट के लिए नक़ल माफियाओं के माध्यम से कितने ही पापड भी बेलता हैं , लेकिन उसके सारे ख्वाब तब चूर-चूर हो जाते हैं जब हाई एजुकशन प्राप्त करने के बाद भी उसका बेटा किसी inter कॉलेज में घंटा बजाने का काम करने लगता हैं और वह भी ५ लाख देने के बाद।
इन दिनों BTC की प्रक्रिया पूरे प्रदेश में चल रही है। मैरिट के आधार पर चयन हो रहा है, जिसमें ऐसे प्रतिभागी चयनित हो रहे हैं जो अपने कैरियर के अनुरूप डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बनकर देश सेवा कर सकते थे मगर अब abc और १२३, अबस में ही सिमट कर क्या ख़ाक कर पायेंगे? बेरोजगारी के दौर की दुहाई देकर अपने से कमजोर वर्ग का हक़ मारना कहाँ का न्याय है? जब BTC की अर्हता स्नातक तो सिर्फ स्नातक को ही इस पद के अनुरूप अर्ह माना जाना चाहिए, कम या ज्यादा नहीं।