रहस्य पढ़कर आपको लगा होगा - शास्त्री आत्मश्लाघा कर रहा है ! यानि अपने मुह मिया मिठ्ठू बन रहा है। आप सबका यह चिंतन भी एक रहस्य है। जरा अंतर्मुखी होकर आत्मतत्व का चिंतन करो। अपने जीवन के रहस्यों को नेति-नेति मानते हुए तदरूप हो जाओ ।
यह कठिन है? नहीं
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