Sunday, October 17, 2010


Charpat Panjrika Morning, evening, night and day multi-Ah caste month season। Age decay times in the cycle, not even around Hji. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Fire to gain body heat, chin Chanpe Hutuvne. Forest habitat hand bowl, no ASA Hji you. Dim - the name of green take Bhaj Mati. When you Kamaat flame, the flame love to get. Null body was shabby, Milan Dutkar started. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Bstr brown or ocher, Hute large multi hairstyle. Nana Baba Dharen disguised as abdominal behalf. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Do not rinse Ganga Gita knowledge Laho not. Hari discuss how welfare brother. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Sports in the Balpan, Youth indulgence - luxury. At all times Afse worry, do not cut the loop sense. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Birth death Pune - Pune met womb prison each time. Ha Sea more insurmountable, Murari beyond me. Dim - the name of green take Bhaj Mati. He Shihkesh body relaxed, loose teeth Alatt do. ASA is not yet forgotten Hji life fact. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Omar Dlly lust, dry water pond. In poverty as it kin, Atmatta Ha - fervor. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Breast buttocks are the only charge of Maya. Think disorder or meat Devesh now. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Where who you came to My Father. Think of the world's anguish Hj dream idea. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Mr. Hari Jpo read Gita, Hari Jpo Ssahss name. Howe eternally Satsangh Dear distribute fiercely prices. Dim - the name of green take Bhaj Mati. The body until the life long attachment to kin. Body blow for the wife of Hans sense fear. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Arzh Aramni are already, then come tan disease. Death to accept the truth not Peapahog Hje. Dim - the name of green take Bhaj Mati. Devesh Shastri

चर्पट पंजरिका

सुबह शाम दिन-रात बहु, आत जात ऋतु मास।
काल चक्र में आयु क्षय, तजी न फिर भी आस॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

आग घाम तन लाभ को, ठोड़ी घुटुवन चांप।
हाथ कटोरा वास वन, तजी ना आसा आप॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

जब लौं आप कमात हैं , तब लौं मिलता प्यार।
तन अशक्त जर्जर हुआ, मिलन लगी दुत्कार॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

गेरू भूरे बस्त्र या , घुटे बड़े बहु केश ।
बाबा उदर निमित्त ही धारें नाना वेश॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

करो न गंगा आचमन लाहो न गीता ज्ञान।
हरि चर्चा भाई नहीं कैसे हो कल्याण॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

खेल-कूद में बालपन , यौवन भोग-विलास।
ज़रा काल चिंता फसे, कटे नहीं भाव पाश॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

जनम मरण पुनि-पुनि मिले, कोख कैद हर बार।
भव सागर दुस्तर अधिक, करो मुरारी पार
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

देह शिथिल शितकेश भे , गिरे दांत कर लट्ठ ।
फिर भी आसा ना तजि भूले जीवन तथ्य॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

ढली उमर में वासना, सूखा जल तालाब।
ज्यों दरिद्रता में स्वजन, आत्मतत्व भव-चाव॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

कुच नितम्ब तो मात्र हैं माया के आवेश।
अथवा मांस विकार हैं सोचो अब देवेश॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

कौन आप आये कहाँ से को माई बाप।
सोचो स्वप्न विचार तज दुनिया का संताप॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

गीता पढ़ श्री हरि जपो, जपो सहस हरि नाम।
नित होवे सतसंग प्रिय बांटो जमकर दाम॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

जबतक तन में प्राण हैं, तब तक स्वजन लगाव।
हंस उड़ा तन के लिए पत्नी का भय भाव॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।

पहले रमणी ऱत रहे, फिर आये तन रोग।
मृत्यु सत्य स्वीकार पर तजे न पापाभोग॥
मंद-मति भज ले हरी का नाम।
(आदिशंकराचार्य रचित चर्पतापन्जरिका का काव्यानुवाद )
देवेश शास्त्री

इश्वर एक रहस्य


Tuesday, July 13, 2010

थिओसोफी क्या है?

थिओसोफी दो ग्रीक शब्द थिओस यानि ईश्वर तथा सोफि यानि दैवीय ज्ञान से मिल कर बना है। हिन्दू धर्म में ब्रह्मविद्या इस्लाम सूफीमत तथा ईसाई धर्म gnoisis इसके समतुल्य या पर्याय कहे गए हैं। इस प्रकार थिओसोफी का अर्थ है- ब्रह्मविद्या (ब्रह्मज्ञान)।
दिव्य मन किस प्रकार कार्य करता है इसका वर्णन ही थिओसोफी है। जब हम दैवीय विधान के विकास क्रम को समझ लेते हैं, तो हमारे सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं। थिओसोफी यानि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति प्राणिमात्र में बंधुत्व भाव का जीवन बरतने से ही हो सकती है। क्योंकि प्रेम प्रेरित कर्म ही सक्रिय ब्रह्मज्ञान है। जो प्रेम पूर्वक कर्म करता है वह अवश्य ही ब्रह्मज्ञान ही प्राप्त करता है। स्वयं थिओसोफी न केवल धर्म है और न ही कोई पंथ। यह तो पुरातन ज्ञान है जो सामान्य रूप से सभी धर्मों में समाहित है । धर्म न दूसर सत्य समाना, यानि सत्य से बढ़ कर कोई दूसरा धर्म नहीं है। इसी आधार शिला पर थिओसोफी मजबूती से खडी है। थिओसोफी में विचार प्राचीन - आधुनिक व वैज्ञानिक आविष्कारों तथा शोधों पर आधारित हैं। naveenatam विचारों, अवधारणाओं व आविष्कारों को आत्मसात करने की क्षमता है। थिओसोफीकल सोसायटी विश्व व्यापी संस्था है। किसी भी धर्म को मानाने वाले इसके सदस्य हैं।
थिओसोफी की मान्यता - सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। सत्य की खोज अध्ययन एवं पवत्र जीवन व उच्च विचारों से ही संभव है। सत्य का सत्व है-पदार्थ, जीवन, चेतना और चेतना से परे का तत्व। इसी श्रंखला में चेतन वह तत्व है , जिसके द्वारा हम शेष तत्वों का अनुभव करते हैं
हमें अपनी चेतना को समस्त पूर्व संग्रह से खाली करना होगा तभी वह तत्व प्रकाशित होगा । जिसका अस्तित्व है और जो सत्य है । सत्य या प्रज्ञान पूरी तरह से खुले मन के अतिरिक्त और किसी तरह नहीं पाया जा सकता है।

Thursday, July 8, 2010

हक़ हरण

विकल्प ने किया संकल्प का सत्यानाश

दर्शन-शास्त्र के अनुसार संकल्प ही प्रमुख हैं जब कि विकल्प किसी भी प्राणी को उसके गंतव्य तक नहीं पंहुचा सकते । संकल्प से दृढ इच्छा शक्ति का प्रादुर्भाव होता हैं ओर प्राणी अपने संकल्प को पूरा करने के लिए जी जान लगा देता हैं जबकि विकल्प इच्छा-शक्ति को कमजोर कर हारे पै हरि नाम का दृष्टिकोण बनाकर विकल्पों को सामने रख लेता हैं ओर कभी भी गंतव्य तक पंहुचने की इच्छा-शक्ति जागृत नहीं कर पाता

२१ वी शताब्दी के इस दौर में जब कि कंप्यूटर क्रान्ति का युग चल रहा हैं ऐसे में युवापीढ़ी को राष्ट्र उत्थान कि दिशा में संकल्प पूर्वक दृढ इच्छा-शक्ति के साथ आगे बदना चाहिए जबकि युवापीढ़ी अपने मनोबल को कमजोर करते हुए विकल्पों के आधार पर ऊपर बढ़ने की वजाय नीचे की ओर गिरती जा रही हैं ऐसे में भला राष्ट्रका उत्थान कैसे हो सकता हैं ? प्रत्येक अभिभावक अपनी संतान के उज्जवल भविष्य की कल्पना करते हुए उसकी अभिरुचि के अनुरूप शिक्षित करने का प्रयास करता हैं और उस दिशा में ऊँची से ऊँची डिग्री हासिल कराता हैं भले ही हाई मैरिट के लिए नक़ल माफियाओं के माध्यम से कितने ही पापड भी बेलता हैं , लेकिन उसके सारे ख्वाब तब चूर-चूर हो जाते हैं जब हाई एजुकशन प्राप्त करने के बाद भी उसका बेटा किसी inter कॉलेज में घंटा बजाने का काम करने लगता हैं और वह भी ५ लाख देने के बाद।
इन दिनों BTC की प्रक्रिया पूरे प्रदेश में चल रही है। मैरिट के आधार पर चयन हो रहा है, जिसमें ऐसे प्रतिभागी चयनित हो रहे हैं जो अपने कैरियर के अनुरूप डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बनकर देश सेवा कर सकते थे मगर अब abc और १२३, अबस में ही सिमट कर क्या ख़ाक कर पायेंगे? बेरोजगारी के दौर की दुहाई देकर अपने से कमजोर वर्ग का हक़ मारना कहाँ का न्याय है? जब BTC की अर्हता स्नातक तो सिर्फ स्नातक को ही इस पद के अनुरूप अर्ह माना जाना चाहिए, कम या ज्यादा नहीं।

Monday, April 12, 2010

Friday, April 9, 2010