Wednesday, November 23, 2011

आसक्ति और कामना को त्यागना होगा

मदालसा आख्यान
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रानी मदालसा अपने पहले पुत्र को बचपन से ही वे संस्कार देने शुरू कर दिए जो वास्तविक विद्या है। आज हम जो विद्या ग्रहण करने पर जोर देते हैं या ले रहे है वह विद्या नहीं अविद्या है। सा विद्या या विमुक्तये, ये जीवन का लक्ष नहीं जो अपनाते हुए कदाचार कर रहे हैं ।
मदालसा के उपदेश से बालक विरक्त होकर जंगल में चला गया। दूसरा पुत्र हुआ उसे भी मदालसा ने वास्तविक विद्या दी , वह भी चला गया। इस तरह क्रमशः ४ पुत्र सन्यासी हो गए। जब पांचवां गर्भ आया तो राजा ने कहा प्रिये ! अब होने वाली संतान को वह विद्या मत देना, हमें उत्तराधिकारी चाहिए।
पति के आदेश पर पांचवें पुत्र को मोह-लोभ , राग द्वेष के साथ राजयोग की शिक्षा दी। वह बड़ा हुआ आश्रम व्यवस्था के तहत राजा रानी ने पुत्र का राज्याभिषेक कर संन्यास आश्रम में जाने का विचार किया। रानी मदालसा ने पुत्र को एक अंगूठी दी और कहा कि इसमें उपदेश-पत्र रखा है। जीवन में जब भारी संकट आये कोई सहारा न दिखे तब अंगूठी से उपदेश-पत्र निकल कर पढ़ लेना। यह कहकर राजा रानी जंगल में चले गए।
मदालसा के पुत्र ने १००० वर्ष शासन किया प्रजा खुशहाल थी। काशी नरेश ने आक्रमण कर दिया भयंकर युद्ध में मदालसा का पुत्र हर गया वह बीवी -बचों को छोड़कर अपनी जान बचाते हुए भाग खडा हुआ। जंगल में बेहाल वह घास फूस खाकर समय काटने लगा। उसे याद आया माँ ने कहा था - जीवन में जब भारी संकट आये कोई सहारा न दिखे तब अंगूठी से उपदेश-पत्र निकल कर पढ़ लेना। उसने तत्काल उपदेश-पत्र निकाला , जिसमें १ श्लोक था , भावार्थ इस तरह है- संग (आसक्ति) सर्वथा त्याज्य है यदि संग त्यागना मुश्किल हो तो सतसंग करो, कामना सर्वथा त्याज्य है यदि संभव न हो तो मोक्ष की कामना करो।
उक्त उपदेश ही हम सभी लोगों को विद्या- अविद्या का भेद बताता है।
उक्त मदालसा उपाख्यान को पढ़ें, गुनें यही आत्मतत्व का सार है।

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